ग्लूकोमा : नजर पर बढ़ता खतरा
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ग्लूकोमा यानी काला मोतिया, दृष्टिहीनता का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। यह एक लाइलाज रोग है, जो धीरे-धीरे बढ़ता है। समय पर उपचार कराना ही इसे बढ़ने से रोक सकता है। ग्लूकोमा से हुए नुकसान को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे और बढ़ने से रोका जा सकता है। ग्लूकोमा का उपचार आंखों में दबाव कम करके किया जाता है। मरीज की स्थिति के आधार पर डॉक्टर उपचार का विकल्प चुनते हैं, जिनमें आई ड्रॉप, मुंह से खाई जाने वाली दवाएं, लेजर ट्रीटमेंट व सर्जरी शामिल हैं। सर्जरी के विकल्पों में लेजर सर्जरी और विभिन्न सर्जिकल प्रक्रियाएं शामिल हैं। सर्जरी का मकसद आंख में फ्लूइड के ड्रेनेज को सुधार कर दबाव को कम किया जाता है।
लेजर ट्रैबेक्युलोप्लॉस्टी :
इसमें आंखों से तरल पदार्थों को निकालने में मदद मिलती है। कई मामलों में इस उपचार के बाद डॉक्टर दवाएं भी देते हैं। इसे करने से पहले आंखों को सुन्न करने के लिए आई ड्रॉप डाली जाती हैं। इसमें प्रकाश की उच्च तीव्रता वाली किरण का इस्तेमाल किया जाता है।
ग्लूकोमा फिल्टरिंग सर्जरी :
ग्लूकोमा में इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक सर्जरी को फिल्टरिंग सर्जरी कहते हैं। यह तब की जाती है जब दवाओं और लेजर सर्जरी से सफलता नहीं मिलती। सर्जरी के पहले आंखों के आसपास के हिस्से को सुन्न करने के लिए छोटे इंजेक्शन लगाए जाते हैं। तरल पदार्थ बाहर निकालने के लिए नया रास्ता बनाने के लिए ऊतकों के छोटे से भाग को निकाला जाता है। पारंपरिक सर्जरी के द्वारा आंखों के दबाव को 60-80 प्रतिशत तक कम करने में सहायता मिलती है।
ड्रेनैज ट्यूब :
इसमें अतिरिक्त फ्लूइड निकालने के लिए एक छोटी ट्यूब शंट डाली जाती है।मिनिमली इनवैसिन ग्लूकोमा सर्जरी : यह एक अत्याधुनिक तकनीक है, जिसे एमआईजीएस कहते हैं। इसमें ड्रेनैज ट्यूब और फिल्टरिंग सर्जरी से कम जोखिम होता है। सर्जरी के कारण बना जख्म भी जल्दी ठीक होता है।नुमान है कि वर्तमान दशक के अंत तक आंखों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के मामले लगभग 33 प्रतिशत तक बढ़ जाएंगे। ग्लूकोमा फाउंडेशन के अनुसार, 2020 के अंत तक एक करोड़ बारह लाख लोग ग्लूकोमा के चलते अपनी आंखों की रोशनी गंवा सकते हैं। अधिकतर मामलों में ग्लूकोमा का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता, इसीलिए इसे ‘साइलेंट ब्लाइडिंग डिजीज’ भी कहा जाता है। अगर समय पर उपचार नहीं कराया जाए तो यह समस्या लगातार गंभीर होती जाती है। शुरुआत मेंे आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है और आखिरकार दिखाई देना पूरी तरह बंद हो जाता है। काला मोतिया ग्लूकोमा, जिसे काला मोतियाबिंद भी कहा जाता है, आंखों से जुड़ी समस्या है, जो आंखों को मस्तिष्क से जोड़ने वाली तंत्रिका ‘ऑप्टिक नर्व’ को नुकसान पहुंचाती है। ज्यादातर मामलों में ग्लूकोमा, आंखों में सामान्य से अधिक दबाव बढ़ने से होता है, इस स्थिति को ऑक्युलर हाइपरटेंशन कहते हैं। लेकिन यह समस्या इंट्राऑक्युलर प्रेशर के कारण भी हो सकती है। ग्लूकोमा के सबसे सामान्य रूप, प्राइमरी ओपन-एंगल ग्लूकोमा में, आंख में फ्लू का दबाव बढ़ जाता है। दबाव बढ़ने से ऑप्टिक नर्व के फाइबर नष्ट होने लगते हैं, जिससे वह क्षतिग्रस्त हो जाती है। एडवांस ग्लूकोमा दृष्टिहीनता का कारण बन सकता है। किनको ज्यादा जोखिम ग्लूकोमा का सही कारण अभी पता नहीं है। कुछ कारक जरूर हैं, जो इसके खतरे को बढ़ाते हैं- ’ आंखों पर अत्यधिक आंतरिक दबाव पड़ना, जो 60 वर्ष से अधिक के लोगों में ज्यादा होता है ’ आनुवंशिक कारण ’ डायबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तदाब और सीकल सेल एनीमिया जैसी स्थितियां ’ आंखों से जुड़ी समस्याएं, जैसे- मायोपिया ’ पहले हुई आंखों की कोई सर्जरी ’ कार्टिकोस्टेरॉएड युक्त दवाएं, विशेष रूप से लंबे समय तक आई ड्रॉप का इस्तेमाल ’ कॉर्निया का सामान्य से अधिक पतला हो जाना ’ आंखों में बहुत ज्यादा सूजन व दर्द होना बेहद गंभीर समस्या ग्लूकोमा दृष्टिहीनता का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। इसका कोई उपचार नहीं है। इसलिए आंखों को जो क्षति पहुंच चुकी है, उसे दवाओं और सर्जरी से ठीक नहीं किया जा सकता, केवल और अधिक नुकसान होने को रोका जा सकता है। नवजात शिशु से लेकर बुजुर्गों तक, किसी को भी ग्लूकोमा हो सकता है। कई बच्चे ग्लूकोमा के साथ जन्म लेते हैं। अमूमन ग्लूकोमा का कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। आंखों में दबाव बढ़ने पर भी सीधा कोई लक्षण सामने नहीं आता। अधिकतर को तो तब पता चलता है जब आआंखों की रोशनी काफी कमजोर हो जाती है।
इन लक्षणों से पहचानें ’
आंखों और सिर में तेज दर्द होना ’ जी मिचलाना और उल्टी होना ’ आंखे लाल होना या दृष्टि गड़बड़ा जाना ’ रोशनी के आसपास रंगीन छल्ले दिखाई देना 40 के बाद नियमित जांच कराएं 40 साल की उम्र के बाद ग्लूकोमा होने की आशंका बढ़ जाती है। इस उम्र के बाद हर दो साल में एक बार अपनी आंखों की जांच जरूर कराएं। अधिकतर लोग सोचते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ नजर का कमजोर होना एक सामान्य बात है, इसलिए वे इसे गंभीरता से नहीं लेते। लेकिन हो सकता है कि नजर की कमजोरी ग्लूकोमा की वजह से हो।
कैसे होती है जांच ’
टोनोमेट्री परीक्षण: परीक्षण में पहले आई ड्रॉप डालकर आंखों को सुन्न किया जाता है। फिर टोनोमीटर उपकरण के द्वारा आंखों के आंतरिक दबाव को मापा जाता है। ’ ऑप्थेल्मोस्कोपी परीक्षण: इसमें ऑप्टिक नर्व की वास्तविक स्थिति का पता लगाया जाता है। आंखों की पुतली को फैलाने के लिए आई ड्रॉप डाली जाती है, ताकि ऑप्टिक नर्व के आकार और रंग की ठीक प्रकार से जांच की जा सके। ’ पेरीमेट्री परीक्षण: इस जांच से पता चलता है कि काला मोतिया से दृष्टि को कितना नुकसान पहुंचा है। ’ गोनियोस्कोपी परीक्षण: इससे यह तय करने में मदद मिलती है कि कार्निया और आइरिस के बीच का कोण खुला और चौड़ा है या संकीर्ण और बंद। ’ पाकीमेट्री परीक्षण: इसमें पाकीमीटर से कार्निया की मोटाई मापी जाती है। यह एक आसान और दर्दरहित तरीका है।रोकथाम काला मोतिया को रोकना संभव नहीं है, लेकिन कुछ उपाय हैं जिनसे इसके खतरे को कम कर सकते हैं। ’ आंखों की नियमित जांच कराते रहें। ’ रोजाना वर्कआउट करें ताकि इंट्रा ऑक्युलर प्रेशर को नियंत्रित किया जा सके। ’ आंखों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें। आंखों में लगी गंभीर चोट भी ग्लूकोमा का कारण बन सकती है। ’ अगर परिवार में ग्लूकोमा या आंखों से संबंधित कोई समस्या है तो डॉक्टर से इस बारे में चर्चा करें। ’ डॉक्टर की बताई आई ड्रॉप नियमित डालें।
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